Sunday, June 27, 2010

रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट

रंगनाथ मिश्रा आयोग मुस्लिम समुदाय की उन बिरादिरयों के अनुसूचित जातियों में शामिल करने की वकालत करता है जिनकी समकक्ष हिदू जातिया अनुसूचित जातियों मे शामिल हैं। किसके लिए हमे ज़रा इतिहास के पन्ने पलटने पडेंगे। अनुसूचित जातियों में अभी तक हिंदू, सिख और बौद्ध ही शामिल हैं। हांलांकि अनुसूचित जाति आदेश 1950 के पैरा तीन में शुरू मे लिखा गया था किऐसा कोई व्यक्ति अनिसूचित जाति में शामिल नहीं होगा जो हंदू धर्म से इतर किसी और धर्म को मानता हो।लेकिन बाद में सिखों की मांग पर 1955 मे इसमें हिंदू शब्द के साथ सिख शब्द जोड़ा गया और 1990 में नवबौद्ध शब्द जोड़ कर बौद्ध धर्म अपनाने वाले दलितों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा देने का रास्ता साफ़ कर दिया गया। 1996 मे नरसिंह राव सरकार ने एक अध्यादेश के ज़रिए इसाई धर्म अपनाने वाले दलितो को भी को भी अनुसूचित जातियों मे शामिल करने की कोशिश की थी लेकिन बीजेपी के तीखे विरोध के चलते एस अध्यादेश को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा। तब से इसाई संगठन दलित इसाइयों को अनुसूचित जातियो में शामिल करने की लगातार मुहिम चला रहे हैं। उन्हीं दिनों मुसलमानों में इस मुद्दे पर जागरूकता पैदा हुई। ऐसे तमाम मुसलमान जिनके पूर्वज कभी दलित हुआ करते थे खुद को अनुसूचित जातियों में शामिल कराने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। ये मामला सुप्रीम कोर्ट मे भी विचाराधीन है। केंद्र सरकार को इस पर सुप्रीम कोर्ट मे जवाब दाख़िल करना है।


इसाइयों और मुसलमानों की इसी मुहिम का नतीजा है कि सरकार ने जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग को इस मसले पर विचार करके सिफ़ारिश करने का ज़िम्मा सौंपा। जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा है कि धर्म के आधार पर मुसलमानों और इसाइयों को आरक्षण से वंचित रखना संविधान के ख़िलाफ़ है। जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने ये भी कहा है कि संवाधान मे संशोधन किए बग़ैर ही इसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों को भी अनुसूचित जातियों मे शामिल किया जा सकता है। जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशों पर अनुसूचित जाति आयोग भी अपनी मुहर लगा चुका है। अब ये पूरा मामला प्रधानमंत्री के हाथ में है। अगर मुस्लिम संगठन इस पर ज़ोर दें तो ये काम जल्दी हो सकता है। बीजेपी और कांग्रेस को छोड़ कर तमाम राजनीतिक दल इसके हक़ में। सवाल पैदा होतो है कि तमाम मुस्लिम संगठन इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से बात क्यों नहीं करते ? अभी तक एक भी मुस्लिम संगठन ने जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशें लागू कराने के लिए आंदोलन छेड़ने की बात नहीं की है। अगर रंगनाथ मिश्रा आयोग की ये सिफ़ारिशें अमल में जाएं तो मुसलमानों के विकास के रास्ते खुल सकते है। अनुसूचित जातियों को मिलने वाली तमाम सुविधाएं बेहद ग़रीब तबक़े के मुसलमानों को भी मिलने लगेंगी और लोक सभा की 79 और देश भर में विधान सभाओं की उन 1050 सीटों पर चुनाव लड़ने का रास्ता भी साफ़ हो जाएगा जो अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं। इससे महिला आरक्षण विधेयक मे मुसलमानों के लिए कोटा तय करने का मसला भी हल हो जाएगा।




Saturday, May 8, 2010